संशय सर्प के समान है।
जैसे सर्प के काटने पर व्यक्ति
किसी अच्छे चिकित्सक के पास
तत्काल पहुँच जाये तो बच जाता है।
ठीक उसी प्रकार से
संशय रूपी सर्प ने जिसे डस लिया है,
वह यदि किसी श्रोत्रिय-ब्रह्मनिष्ठ सद्गुरु के पास
तत्काल पहुँच जाये तो
उसका संशय मिट सकता है
और वह "स्वस्थ" हो सकता है।
नचेत् उसका भ्रमित एवं मूर्छित होकर
नष्ट होना सुनिश्चित है।
इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को
सदैव "संशय-मुक्त" रहने का प्रयास करना चाहिए।
(पूज्यपाद सद्गुरुदेव श्री स्वामीजी के प्रवचन से...)
~ एड्मिन
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