यहाँ तर्क के द्वारा
असली को भी नकली
और नकली को भी असली
सिद्ध किया जा सकता है।
शब्दों के जाल में उलझाकर
अथवा अपने वाक्चातुर्य से
सत्य को भी मिथ्या
और मिथ्या को भी सत्य के रूप में
प्रतिपादित किया जा सकता है।
लेकिन इससे "संशय" दूर नहीं होता।
इसलिए इसका परिणाम भी अच्छा नहीं होता।
संशयी व्यक्ति नष्ट हो जाता है।
अतः व्यक्ति चाहे कितना भी चतुर
और बुद्धिमान क्यों न हों-
उसे ऐसी बुद्धिमानी नहीं दिखानी चाहिए
जिससे उसका भी अहित हो
और सामने वाले का भी ...।
- स्वामी सत्यप्रज्ञानन्द सरस्वती
(पूज्यपाद सद्गुरुदेव श्री स्वामीजी के प्रवचन से...)
~ एड्मिन
No comments:
Post a Comment