विषाद में जीते हैं
क्योंकि
वे निरन्तर
दूसरों का दोषदर्शन करते हैं।
जो व्यक्ति दूसरों का
दोष दर्शन करता है
वह न तो भक्त बन सकता है
और न ही ज्ञानी।
भक्ति अथवा ज्ञान के मार्ग पर
चलने के लिए
नेत्र निर्दोष होने चाहिए।
प्रेम की निर्दोषता ही तो 'राधा प्रेम" है ।
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