* प्राज्ञ मंत्र *
गुरु और शिष्य के बीच में
संबंध ज्ञान का होता है,
धन का नहीं।
प्रेम का होता है,
वासना का नहीं ।
आत्मा का होता है,
देह का नहीं ।
ध्यान रहे -
शिष्य में ज्ञान की कमी होती है
और अज्ञान की प्रबलता
जबकि गुरु में
ज्ञान की पूर्णता होती है
और अज्ञान की शून्यता।
इसलिए
ऐसे ज्ञान-प्रेम-स्वरूप
गुरु के संस्पर्श में
जो भी भाग्यवान आ जाता है,
उसका भाग्योदय हो जाता है एवं
अन्ततः वह भी
ज्ञान-प्रेम स्वरूप बनकर
सर्वत्र परमात्मा का दर्शन करते हुए
अहोभाव से भर जाता है
और धन्य हो जाता है।
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(पूज्यपाद सद्गुरुदेव श्री स्वामीजी महाराज के प्रवचन से ... ~ एड्मिन )
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