Sharing different thoughts from different books written by Pujyapad Sadgurudev Paramahansa Swami Satyaprajnananda Saraswatiji Maharaj
Wednesday, August 11, 2021
Prajna Mantra 14
Prajna Mantra 13
Monday, July 26, 2021
Prajna Mantra 12
Prajna Mantra 11
Sunday, July 18, 2021
Prajna Mantra 10
Prajna Mantra 9
Prajna Mantra 8
Prajna Mantra 7
Prajna Mantra 6
Prajna Mantra 5
Prajna Mantra 4
Prajna Mantra 3
Prajna Mantra 2
Monday, June 14, 2021
Prajna Mantra 1
प्राज्ञ मंत्र
अरे भाई! जगत में तुम आये हो मुक्ति पाने के लिए, अज्ञान-जनित बंधनों की श्रृंखला को तोड़ने के लिए। अतः विनम्रता पूर्वक किसी सद्गुरु की छत्रछाया में रहकर उसका उपाय ढूँढो।
जिस दिन गुरु अपने शिष्य को यह समझा देते हैं कि "बेटा! तुम नश्वर नहीं, ईश्वर हो। जीव भाव तुम्हें तुम्हारे प्रारब्ध के कारण मिला है। यथार्थ में तुम आत्म-स्वरूप हो, अजर-अमर-अविनाशी हो" - और वह समझ जाता है- उसी दिन, उसी क्षण वह मुक्त हो जाता है।
तब गुरु और शिष्य भी दो नहीं रहते, एक हो जाते हैं। तब दोनों ही एक-दूसरे के लिए अभिनन्दनीय एवं अभिवन्दनीय हो जाते हैं। तब उनके बीच भी “नमस्तुभ्यं नमो मह्यं तुभ्यं मह्यं नमो नमः” की परम्परा चालू हो जाती है, क्योंकि यही यहाँ की वास्तविकता है।
यहाँ आज जो कली है, वही कल फूल बनता है।
वैसे ही यहाँ आज जो शिष्य है, वही कल गुरु कहलाता है।
- स्वामी सत्यप्रज्ञानन्द सरस्वती
( "केनोपनिषद" पुस्तक से साभार )
Prajna Mantra 14
* प्राज्ञ मंत्र * गुरु एक जलता हुआ दीपक है और शिष्य - जलने के लिए प्रस्तुत एक अन्य दीपक । जब उस अन्य दीपक का गुरु रूपी जलते हुए दीपक से ...
