Wednesday, August 11, 2021

Prajna Mantra 14

* प्राज्ञ मंत्र *

गुरु एक जलता हुआ दीपक है 
और शिष्य -
जलने के लिए प्रस्तुत एक अन्य दीपक । 
जब उस अन्य दीपक का 
गुरु रूपी जलते हुए दीपक से 
संयोग हो जाता है 
तब वह स्वयं प्रज्वलित होकर 
औरों को भी प्रकाश देने लगता है। 
लेकिन ध्यान रहे -
इसके लिए दीपक का 
असली होना भी जरूरी है । 

अब मानलो कहीं अगर दीपक का 
एक सुन्दर सा चित्र बना हुआ है 
और आप -
उसमें दिखाई पड़ रही अग्निशिखा में 
किसी दूसरे दीपक को 
जलाने का प्रयास करोगे 
तो वह जलेगा नहीं,
क्योंकि 
यथार्थ अग्नि से ही 
यथार्थ अग्नि की उत्पत्ति होती है, 
चित्र की अग्नि से नहीं।

इसलिए आध्यात्मिक उन्नति की 
कामना रखने वालों को चाहिए कि 
वे असली गुरुओं से जुड़ें,
नकली गुरु-रूपधारी बहुरुपियों से नहीं ।
                 - - -
(पूज्यपाद सद्गुरुदेव श्री स्वामीजी महाराज के प्रवचन से ... ~ एड्मिन )

Prajna Mantra 13

* प्राज्ञ मंत्र *
गुरु और शिष्य के बीच में 
संबंध ज्ञान का होता है, 
धन का नहीं। 
प्रेम का होता है, 
वासना का नहीं ।
आत्मा का होता है, 
देह का नहीं ।
ध्यान रहे - 
शिष्य में ज्ञान की कमी होती है 
और अज्ञान की प्रबलता
जबकि गुरु में 
ज्ञान की पूर्णता होती है 
और अज्ञान की शून्यता। 
इसलिए 
ऐसे ज्ञान-प्रेम-स्वरूप 
गुरु के संस्पर्श में 
जो भी भाग्यवान आ जाता है,
उसका भाग्योदय हो जाता है एवं 
अन्ततः वह भी 
ज्ञान-प्रेम स्वरूप बनकर 
सर्वत्र परमात्मा का दर्शन करते हुए 
अहोभाव से भर जाता है 
और धन्य हो जाता है। 
               - - -
(पूज्यपाद सद्गुरुदेव श्री स्वामीजी महाराज के प्रवचन से ...                                                  ~ एड्मिन )

Prajna Mantra 14

* प्राज्ञ मंत्र * गुरु एक जलता हुआ दीपक है  और शिष्य - जलने के लिए प्रस्तुत एक अन्य दीपक ।  जब उस अन्य दीपक का  गुरु रूपी जलते हुए दीपक से  ...